प्रारंभिक शिक्षा के नवीन प्रयास | Kothari Aayog | Hunter Aayog | वुड का घोषणा पत्र | राधाकृष्णन आयोग
राधाकृष्णन आयोग (1948-1949) (Radhakrishnan Aayog Kya Hai?) (Radhakrishnan Commission (1948–1949))
प्रारंभिक शिक्षा के नवीन प्रयास | Kothari Aayog Hunter Aayog वुड का घोषणा पत्र राधाकृष्णन आयोग |
विश्वविघालय शिक्षा आयोग (राधाकृष्णन आयोग 1948-1949) स्वतन्त्रता पूर्व से
चली आ रही विश्वविघालय स्तर पर शिक्षा का उद्देश्य, भारतीय छात्रों को परीक्षा तथा
अंग्रेजी शासन में सहयोग के लिए तैयार करना था, जो देश के युवकों के लिए उपयुक्त
नहीं थी तथा नवनिर्माण की माँग उठने लगी, फलतः Inter University Board of
Education तथा केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने एक अखिल भारतीय विश्वविघालय शिक्षा
आयोग के गठन की सिफारिश भारत सरकार से की थी।
4 नवम्बर 1948 को डॉ राधाकृष्णन् की अध्यक्षता मे एक आयोग का गठन किया गया था जिसके सदस्य डॉ
ताराचन्द्र, सर जेम्स एफ डफ, डॉ जाकिर हुसैन, डॉ आर्थर ई. मोर्गन, डॉ ए.
लक्ष्मणस्वामी मुदालियर, डॉ मेघनाथ साहा आदि थे।
इस आयोग का उद्देश्य भारतीय विश्वविघालय शिक्षा पर प्रतिवेदन करना और उन
सुधारों एवं विस्तारों को सुझाना था जो देश की वर्तमान एवं भावी आवश्यकताओं के
उपयुक्त होने के लिए वांछनीय हैं।
वुड का घोषणा पत्र 1854 (Wood Ka Ghoshna Patra Kya hai?) (Wood's manifesto 1854)
लॉर्ड मैकाले द्वारा प्रस्तुत शिक्षा नीति के आज्ञा पत्र से ब्रिटिश शासन को
यह आभाय होने लगा कि भारतीयों की शिक्षा की उपेक्षा अब और नहीं की जा सकती है।
फलस्वरूप 1853 मे संसदीय समिति का गठन किया गया जिसमें तत्कालीन भारतीय
शिक्षाविदों लियन, पैरी, मार्शमैन डफ आदि को सदस्य बनाकर भारत की शिक्षा व्यवस्था
का अध्ययन करके संस्तुति देने को कहा गया उस समय चार्ल्स वुड कम्पनी के बोर्ड ऑफ
कण्ट्रोल का प्रधान था।
उसी के नाम पर
इसे वुड का घोषणा पत्र कहा गया, जिसे 19/9/1854. को कम्पनी ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने घोषित
किया यह एक ऐसा अभिलेख था जिसमें 100 अनुच्छेदों के साथ भारतीयों की शिक्षा की विस्तृत
चर्चा तथा उसके क्रियान्वयन की व्यवस्था लिखी हुई थी तथा कम्पनी के लिए भारतीय की
शिक्षा को पुनीत कर्त्तव्य के रूप में निरूपित किया गया।
हण्टर आयोग (Hunter Aayog Kab Aaya? और Hunter Aayog Kya Hai?)
भारतीय शिक्षा आयोग ब्रिटिश संसद ने सन् 1882 में भारत में गवर्नर जनरल लार्ड
रिपन को नियुक्त किया, तब भारत के एक शिष्टमण्डल ने लॉर्ड रिपन से भारतीयों की शिक्षा
पर ध्यान देने की प्रार्थना की, जिसको लॉर्ड रिपन ने स्वीकार करते हुए 1854 की
शिक्षा नीति का पुनरावलोकन करने का आश्वासन भी दिया।
लॉर्ड रिपन ने अपने आश्वासन
के अनुसार गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी के सदस्य सर विलियम हण्टर की अध्यक्षता में
भारतीय शिक्षा आयोग का 3 फरवरी 1882 को गठन किया, जो अध्यक्ष होने के कारण विलियम
हण्टर के नाम पर हण्टर आयोग कहलाया।
इस आयोग में कुल 20 सदस्य थे, जिसमें 7 भारतीय
सदस्य सैयद महमूद आनन्द मोहन बोस, के.टी तैलंग, पी.रंगानन्द मुदालियर, महाराजा
जितेन्द्र टैगोर और हाजी गुलाम मुहम्मद थे। इस आयोग के सचिव तत्कालीन मैसूर के
शिक्षा निदेशक बी.एल. राइस बनाये गये।
कोठारी आयोग (Kothari Aayog in Hindi और Kothari Aayog Kya Hai?)
भारत के स्वतन्त्र होने से पूर्व अंग्रेजों द्वारा भारत को सुधारने हेतु अनेक
आयोग व समितियों का गठन किया गया, जो अपनी आख्यायें देती रहीं, लेकिन ये सभी
समितियाँ भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे
में स्तरवार खण्ड करके आख्या देती रहीं।
सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था पर किसी समिति
ने रिपोर्ट नहीं दी। 1947 में स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने सम्पूर्ण शिक्षा
व्यवस्था को सुधारने का संकल्प लेकर एक ऐसे आयोग की आवश्यकता का अनुभव किया जो देश
की सामाजिक, आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर शिक्षा व्यवस्था देने की संस्तुति
करे।
इसी संकल्प के अधीन 14 जुलाई 1964 को विश्विविघालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष
प्रो. डी.एस कोठारी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया, जिसके कारण इस आयोग का नाम
कोठारी आयोग पड़ गया।
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