East India Company Full History in Hindi
East India Company in Hindi (History of India) |
ईस्ट इण्डिया कम्पनी-East India Company in Hindi
- कम्पनी शक्ति की स्थापना- East
India Company
मुगल बादशाहों में औरंगजेब आखिरी शक्तिशाली बादशाह थे। उसने वर्तमान भारत के
एक बहुत बड़े हिस्से पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया था। 1707 ई. में उसकी मृत्यु के
बाद सारे मुगल सूबेदार और बड़े बड़े जमींदार ताकत दिखाने लगे थे। इस जमींदारों ने
अपनी क्षेत्रीय रियासतें कायम कर ली थी। जैसे-जैस विभिन्न भागों में ताकतवर
क्षेत्रीय रियासतें सामने आने लगीं, दिल्ली अधिक दिनों तक प्रभावी केन्द्र के रूप
में नही रह सकी। 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध तक राजनीतिक क्षितिज पर अंग्रेजों के
रूप में एक नई ताकत उभरने लगी थी।
- पूर्व में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का भारत में आना- East India Company Bharat Kab Aayi thi
1600 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने
इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम से चार्टर अर्थात् इजाजतनामा हासिल कर लिया
जिससे कम्पनी को पूर्व से व्यापार करने का एकाधिकारी मिल गया। इस इजाजतनामें का
मतलब यह था कि इंग्लैण्ड की कोई और व्यापारिक कम्पनी इस इलाके में ईस्ट इण्डिया
कम्पनी से होड़ नहीं कर सकती थी। इस चार्टर के सहारे कम्पनी समुद्र पार जाकर नये
इलाकों को खंगाल सकती थी, वहाँ से सस्ती कीमत पर चीजें खरीद कर उन्हें यूरोम में
ऊँची कीमत पर बेच सकती थी।
अंग्रेजों के आने से पहले पुर्तगालियों ने भारत के पश्चिमी तट पर उपस्थिति
दर्ज करा दी थी। वे गोवा में अपना ठिकाना बना चुके थे। पुर्तगाल के खोजी यात्री
वास्को डी गामा ने ही 1498ई. में पहली बार भारत तक पहुँचने के इस समुद्री मार्ग का
पता लगाया था। 17वीं शताब्दी की शुरूआत तक डच भी हिन्द महासागर में व्यापार की
सम्बावनाएँ तलाशने लगे थे।
कुछ ही समय बाद फ्रांसीसी व्यापारी भी सामने आ गए। समस्या यह थी कि सारी
कम्पनियाँ एक जैसी चीजें ही खरीदना चाहती थीं।
यूरोप के बाजारों में भारत के बने
बारीक सूती कपड़े और रेशम की जबरदस्त माँग थी। इनके अलावा काली मिर्च, लौंग,
इलायची और दालचीनी की भी जदरदस्त माँग रहती थी, यूरोपीय कम्पनियों के बीच इस बढ़ती
प्रतिस्पर्द्धा से भारतीय बाजारों में इन चीजो की कीमते बढ़ने लगीं और उनसे मिलने
वाला मुनाफा गिरने लगा।
अब इन व्यापारिक कम्पनियों के फलने-फूलने का यही एक रास्ता
था कि वे प्रतिस्पर्द्धा कम्पनियों को खत्म कर दे। इसलिए बाजारों पर कब्जे की इस
होड़ में व्यापारिक कम्पनियों के बीच लड़ाइयों की शुरूआत कर दी।
17वीं और 18वीं सदी में जब भी मौका मिलता कौई-सी एक कम्पनी दूसरी कम्पनी के
जहाज डुबो देती, रास्ते में रुकावटें खड़ी कर देती है और माल से लदे जहाजों को आगे
बढ़ने से रोक देती है। यह व्यापार हथियारों की मदद से चल रहा था और व्यापारिक
चौकियों को किलेबन्दी के जरिए सुरक्षित रखा जाता था।
अपनी बस्तियों को किलेबन्द करने और व्यापर में मुनाफा कमाने की कोशिशों के
कारण स्थानीय शासकों सेभी टकराव होने लगे।
- ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा बंगाल में व्यापार की शुरुआत कैसे हुई
पहली इंग्लिश फैक्टरी 1651ई. में हुगली नदी के किनारे शुरू हुई। कम्पनी के
व्यापारी यहीं से अपना काम चलाते थे। इन व्यापारियों को उस जमाने में फैक्टर कहा
जाता था। इस फैक्टरी में वेयरहाउस था जहाँ निर्यात होने वाली चीजों को जमा किया
जाता था।
यहीं से उसके दफ्तर थे जिनमें कम्पनी के अफसर बैठते थे जैसे जैसे व्यापार
फैला कम्पनी ने सौदागरों औऱ व्यापारियों को फैक्टरी के आस पास आकर बसने के लिए
प्रेरित किया।
1696ई. तक कम्पनी ने एक आबादी के
चारों तरफ एक किला बनाना शुरू कर दिया था। दो साल बाद उसने मुगल अपसरों को रिश्वत
देकर तीन गाँवों की जमींदारी भी खरीद ली।
इनमें से एक गाँव कालीकाता था, जो बाद
में कलकत्ता बना। अब इसे कोलकाता कहा जाता हैं।
कम्पनी ने मुगल सम्राट औरंगजेब को इस बात के लिए भी तैयार कर लिया कि वह
कम्पनी को बिना शुल्क चुकाए व्यापारा करने का फरमान जारी कर दें।
- व्यापार से युद्धों तक को सफर- East
India Company Ke Vikas Per Prakash Daliye
18वीं सदी की शुरुआत में कम्पनी और बंगाल के नवाबों का टकराव काफी बढ़ गया था।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद बंगाल के नावब अपनी ताकत दिखाने लगे थे।
मुर्शिद कुली खान के बाद अली वर्दी खान और उसके बाद सिराजुद्दौला बंगाल के
नवाब बने। उन्होंने कम्पनीं को रियासतें देने में मना कर दिया। व्यापार का अधिकार
देने के बदले कम्पनी से नजराने माँगे, उसे सिक्के ढालने का अधिकार नहीं दिया औऱ
उसकी किलेबन्दी को बढ़ाने से रोक दिया। कम्पनी पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए
उन्होंनें दलील दी कि उसकी वजह से बंगाल सरकार की राजस्व वसूली कम होती जा रही है
और नवाबों की ताकत कमजोर बड़ रही हैं।
कम्पनी टैक्स चुकाने को तैयार नहीं थी, उसके अफसरों ने अपमानजनक चिट्ठियाँ
लिखी और नवाबों व उनके अधिकारियों को अपमानित भी करने का प्रयास किया।
ये टकराव दिनो दिन गम्भीर होते गए अन्ततः इऩ टकरावों की परिणति प्लासी के
प्रसिद्ध युद्ध के रूप में हुई थी।
- यूरोपीय कंपनियों का भारत आगमन | भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन का क्रम
भारत में यूरोपीय वाणिज्यिक कंपनियों का आगमन 15वीं शताब्दी में उत्तरार्द्ध
में हुआ था। उनके आगमन का क्रम इस प्रकार का है-
कंपनी
|
आगमन वर्ष
|
कंपनी
|
आगमन वर्ष
|
पुर्तगाली
|
1498ई.
|
डेनिस
|
1616ई.
|
अंग्रेज
|
1600ई.
|
फ्रांसीसी
|
1664ई.
|
डच
|
1602ई.
|
स्वीडिश
|
1731ई.
|
- पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना
- पुर्तगाली वास्कोडिगामा गुजराती पथ प्रदर्शक अब्दुल मुनीद की सहायता से 90दिनों की समुद्री यात्रा के बाद 14 मई. 1498ई. को कालीकट (केरल) बंदरगाह पर उतरा। वहाँ पर हिन्दू शासक जमोरिन ने उसका स्वागत किया।
- पेड्रो अल्ब्रेज कैब्राल दूसरा पुर्तगाली था जो 31 मई 1500ई. में भारत आया था।
- भारत में प्रथम पुर्तगाली गवर्नर कौन था ?
- फ्रांसिस्कों डी अल्मीडा (1505-1509ई.) में प्रथम पुर्तगाली गवर्नर के रूप में 1505. में भारत आया था। उसने भारत में शांत जल की नीति को अपनाया था।
- 1509ई. में अल्फांसो डी अल्बुकर्क दूसरा गवर्नर बन कर भारत में आया। वह भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने कोचीन को अपना मुख्यालय बनाया।
- 1510ई. में उसने बीजापुर के शासक युसूफ आदिलशाह से गोवा छीना।
- 1530ई. में पुर्तगाली गवर्नर नीनू डी कुन्हा कोचीन की जगह गोवा को राजधानी बनाया।
- पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डिसूजा के साथ प्रसिद्ध संत फांसिस्कों जेवियर भारत आये। उस ने सैनथोमा (मद्रास) हुगली (बंगाल), और दीव (कठियावाड़) में पुर्तगाली बस्तियों की स्थापना की।
- भारत का पहला प्रिंटिंग प्रेस (1556ई.) में पुर्तगाली ने गोवा में स्थापित किया उन्होंने कार्टज—आर्मेडा काफिला पद्धति पर जहाजों के अरब सागर में प्रवेश को नियंत्रित किया। उन्होंने गोथिक स्थापत्य कला का प्रचलन भी किया।
- पुर्तगालियों ने 1503ई. में कोचीन (केरल) अपने पहले दुर्ग और 1505ई. कन्नूर मे दूसरी फैक्ट्री स्थापित की।
- उन्होंने तम्बाकू की खेती से भारतवासियों को अवगत कराया।
- वे भारत में सबसे पहले आए औऱ 1961ई. में गोवा छोड़ कर सबसे अंत में गए।
डच होलैण्डवासी ईस्ट इंडिया कंपनी
- डच संसद द्वारा 1602ई. में डज ईस्ट इंण्डिया कंपनी की स्थापना की गई। कोर्नेलियन हाऊटमैन पहला डज यात्री था जो 1596ई. में भारत में पहुचाँ।
- डच नौसेना नायक वादेर हेग ने 1605. में मसुलीपट्टनम में प्रथम डच कारखाना तथा पेत्तोपोली (निजामपत्तनम) में दूसरा कारखाना स्थापित किया।
- डज स्थापित कुछ अन्य कारखाने पुलीकट (1610ई.) सूरत (1616ई.) कोचीन (1663ईं.)।
- पुलीकट में डच कारखाने को गेल्ड्रिया का किला तथा चिनसुरा हुगली में गुस्ताबुल फोर्ट कहा जाता था।
- बंगाल में पीपली में पहली डच फैक्ट्री स्थापित की गई लेकिन शीघ्र ही यह बालासोर स्थानांतरित कर दी गई थी।
- डचों ने पुलीकट जो उनका मुख्यालय था उसमें स्वर्ण के सिक्के पैगोडा का प्रचलन करवाया।
- 1759ई. में अंग्रेजों ने डच को बेदार प.बंगाल के युद्ध में पराजित कर भारत में उनकी गतिविधियाँ समाप्त कर दीं।
अंग्रेज- इंग्लैण्ड में मर्चेंट एडवेंचर्स
- इंग्लैण्ड में मर्चेंट एडवेंचर्स नामक व्यापारियों के एक समूह ने दि गवर्नर एण्ड कंपनी आफ मर्चेंट ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडीज की स्थापना 1599ई. में की थी।
- महारानी एलिजाबेथ ने 1600ई. में कंपनी को पूर्व के साथ व्यापार के लिए 15 वर्षों के लिए अधिकार पत्र प्रदान किया।
- इंग्लैण्ड के राजा जेम्स प्रथम के दूत के रूप में कैप्टन हॉकिन्स, हैक्टर नामक जहाज से भारत में आया और जहाँगीर के आगरा स्थित दरबार में पहुँचा वहाँ उसने बादशाह से फारसी में बात की जससे प्रसन्न होकर उसे 400 मनसव एवं इंग्लिश खाँ की उपाधि दी गई।
- अंग्रेजों ने भारत में अपनी प्रथम कंपनी 1611ई. में मसुलीपट्टनम में स्थापित की थी।
- अंग्रेजों ने 1612ई. में पुर्तगालियों को सूरत के निकट स्वाजीहाल में पराजित किया था।
- अंग्रेजों ने जहाँगीर की अनुमति से सूरत में पश्चिम भारत की पहली और भारत की दूसरी कंपनी स्थापित की।
- ब्रिटेन के राजा जेम्स प्रथम के दूत के रूप में सर टामस रो 18 सितंबर 1615ई. में सूरत आया और 10 जनवरी 1616ई को अजमेर मे जहाँगीर के दरबार में उपस्थित हुआ।
- गोलकुण्डा के सुल्तान ने 1632ई. में अंग्रेजों का सुनहरा फरमान दिया।
- अँग्रजों ने पूर्वी तट पर अपना कारखाना 1633ई. में बालासोर एवं हरिहरपुरा मे स्थापित किया।
- 1639ई. में फ्रांसिस डे नामक अंग्रेज ने चंन्द्रगिरि के राजा से मद्रास पट्टे पर प्राप्त किया औऱ वहाँ पर फोर्ट सेंट जार्ज की स्थापना भी की।
- 1651ई. मे ब्रिजमैन हुगली में एक कारखाना स्थापित किया था
- 1616ई. में पुर्तगालियों ने अनपी राजकुमारी कैथरीन बेगांजा का विवाह ब्रिटेन के राजा चार्ल्स द्वितीय से करके बम्बई को दहेज के रूप में दे दिया था।
- 1669-1677ई. तक बंबई का गवर्नर जेराल्ड आबियार ही बंबई का संस्थापक था।
- बंगाल के सूबेदार शाहशुजा ने 1651ई. में अंग्रेजों को व्यापार करने का विशेषाधिकार दिया।
- विलियम हैजेज बंगाल का प्रथम अंग्रेज गवर्नर था।
- जाब चारनॉक ने बंगाल में तीन गाँव कालिकाता, गोविन्दपुर एवं सुतानाटी को मिलाकर आधुनिक कलकत्ता की नींव रखी तथा फोर्ट विलियम का निर्माण भी किया, जिसका पहला प्रेसीडेंट सर चार्ल्स आयर था।
यूरोपीयों की प्रथम फैक्ट्रियाँ-East India Company
पुर्तगाली
|
कोचीन (केरल) 1502ई.
|
डच
|
मसूलीपट्टनम
(आन्ध्रप्रदेश) 1605ई.
|
अंग्रेज
|
मसुलीपट्टनम 1611ई.
|
डेनिस
|
ट्रावनकोर (तंजौर) 1620ई.
|
फ्रांसीसी
|
सूरत (गुजरात) 1668ई.
|
फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी स्थापना
- फ्रांस के सम्राट लूई (XIV) के मंत्री कॉलबर्ट द्वारा 1664ई. फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कंपनी की स्थापना हुई जिसे कम्पने देस इण्दसे ओरिएंटलेस कहा गया था।
- 1673ई. फ्रेंसिस मार्टिन ने पर्दुचुरी नामक एक गाँव प्राप्त किया, जो आगे चल कर पांडिचेरी के नाम से जाना जाता हैं।
- डचों ने पांडिचेरी को छीन लिया लेकिन रिजविक की संधि के बाद पांडिचेरी पुनः फ्रांसीसियों को मिल गया।
- बंगाल में मुख्य फैक्ट्री चन्द्रनगर में थी।
- फ्रांसीसियों ने 1731ई. मॉरीशस 1724ई. में मालाबार में स्थित माही तथा 1739ई. मे करिकाल पर अधिकार किया।
- 1724ई. मे डूप्ले गवर्नर बना। वह भारत में फ्रांसीसी साम्राज्य स्थापित करना चाहता था।
- अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच कर्नाटक क्षेत्र में कुल तीन युद्ध हुए जिन्हें आंग्ल-फ्रांसीसी युद्धि कर्नाटक युद्ध कहा गया था।
- 22 जनवरी 1760ई. को लड़े गए वाण्डिवाश के युद्ध में फ्रांसीसी सेना पराजित हुई औऱ उसका वर्चस्व भारत में समाप्त हो गया। इस युद्ध में जनरल आयरकूट ने अंग्रेजी सेना का नेतृत्व किया था।
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