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राजा राम मोहन रॉय जी का जीवन परिचय | Raja Ram Mohan Roy in Hindi

Raja Ram Mohan Roy Biography in Hindi

राजा राम मोहन रॉय जी का जीवन परिचय Short Biography of Raja Ram Mohan Roy in Hindi Essay
Short Biography of Raja Ram Mohan Roy in Hindi Essay


राजा राममोहन राय के सामाजिक विचारों का वर्णन कीजिए

वो व्यक्ति जो मानवता और इंसानियत के प्रति किसी भी प्रकार से चिंतित हो। जो अच्छाई के लिए माहौल में बदलाव लाना चाहता हो। एक व्यक्ति जुसके पास प्रबुद्ध वैचारिक प्रक्रिया हो।


वह व्यक्ति जो किसी कमजोर वर्ग के लोगों की पीड़ा को सहन नही कर सकता है और वे व्यक्ति जो उनकी सेवा को अपना कर्तव्य मानते है। और अपने बाद एक ऐसी धरती छोड़ना चाहते है जो पहले से बेहतर हो।


वास्तव में एक समाज सुधारक एक आम इंसान होता है जो असाधारण तरीके से मानवता की सेवा करना चाहता है।भारत सौभाग्यसाली है कि उसके इतिहास में कई असाधारण इंसान हुए जिन्होनें अपना पूरा जीवन समाज की बेहतरी और दबे-कुचले वर्ग के लोगो को ऊपर उठाने में लगा दिया।


राजा राम मोहन रॉय, ईश्वर चन्द्र विघासागर, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी, डॉ भीम राव अंबेडकर, ज्योतिबा फुले, एनी बेसेंट, मदर टेरेसा, विनोबा भावे आदि।


आधुनिक भारत बनाने के लिए हम इन असाधारण पुरूष और महिला समाज सुधारकों के जीवन और उनके कार्यों को देखेंगे और इनके प्रयासों की सराहना करेंगे।


राजा राममोहन राय का जन्म


पिता का नाम-

रामकंतो रॉय

माता का नाम-

तैरिनी

प्रचलित-

सती प्रथा, बहु विवाह
बाल विवाह

विवाद-

हिन्दू धर्मों का प्रचार व
अंध विश्वास का विरोध

कार्य-

जमीदारी सामाज की क्रान्ति
ईस्ट इण्डिया कंपनी में कार्य करना

सम्मान-

फ्रेंच ने इनको संस्कृत के अनुवाद के लिए 1824 में सम्मान दिया गया।

उपलब्धियाँ-

ब्रिटिश सरकार द्वारा रेग्युलेशन एक्ट सती के खिलाफ पास हुआ

पत्रिकाएँ-

संबाद कौमुडियान्द मिरत उल अकबर और ब्रहोनिकल पत्रिका

मृत्यु की वजह-

मेनिन्जाईटिस

मृत्यु-

सन् 1833 27 सितम्बर के दिन ब्रिस्टल स्टाप्लेटोन


राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत का पिता क्यों कहा जाता है?


19वीं की शताब्दी के समय में भारत कई सारी सामाजिक बुराईयों में घिरा हुआ
था जैंस जाति प्रथा, अंधविश्वास और सती प्रथा जैसी भयानक बुराईया जो हमारे भारत के लिए अमानवीय था।


भारत का पहला ऐसा व्यक्ति राजा राम मोहन राय थे जिन्होंने भारत में इन अमानवीय प्रथाओं को पहचाना और इनकों नष्ट करने के लिए जंग लड़ने का प्रण लिया था। 

राजा राम मोहन राय को भारत के पुनर्जागरण के शिल्पकार के रूप में और भारत के आधुनिक पिता के रूप में जाना जाता हैं।


प्रतिभाशाली राजा राम मोहन रॉय जी का जन्म बंगाल के (हुगली) जिले के राधानगर सन् 1772 में 22 मई को हुआ और यह एक पारंपरिक बाह्मण परिवास से संबंध रखते थे। 

इन महान व्यक्ति के पिता रामाकांत रॉय थे व इनकी माता का नाम त्रिवानी रॉय था। राजा राम मोहन रॉय जी के पिता उस समय बंगाल के न्यायालय के उच्च पद पर हुआ करते थें।


राजा राम मोहन राय की मृत्यु कैसे हुई?


राजा राम मोहन रॉय जी की शिक्षा पटना और वाराणसी में हुई साथ ही साथ इन्होंने 1803 से लेकर 1814 तक ईस्ट इंडिया की कम्पनी में भी कार्य किया था। 

राजा राम मोहन राय की बहुत ही कम उम्र में इनका विवाह करा दिया गया था और 10 वर्ष की उम्र तक आते आते ये तीन बार परिमय के सूत्र में बंध गए थे। सन् 1833 में 27 सितंबर के दिन इंग्लैण्ड के ब्रिस्टल स्थान में इनकी मृत्यु हो गई थीं।


राजा राम मोहन राय ने ही ब्रह्म समाज की स्थापना की थी इन्होंने 20 अगस्त सन् 1828 ई. में कलकत्ता में ब्रह्म समाज की स्थापना कर दी थीं। इस ब्रह्म समाज की स्थापना का करने का मुख्य उद्देश्य भारत में हिन्दू समाज में बढ़ रही बुराईयों को नष्ट करना था। 

उस सयम भारत की सबसे बड़ी समस्या सती प्रथा जातिवाद, बाल विवाह, बहु विवाह और असृपश्यता आदि की समस्याओं को जड़ से समाप्त करने का इनका दृण संकल्प था।


राजा राम मोहन जी को भारत के पुनर्जागरण का मसीहा कहा जाता है क्योकि इन्होंने के भारत की कई सारी बुराईयों को नष्ट करने में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया हैं।


अगर हम बात करे इनकी कुछ प्रमुख कृतियों के बारे में तो सबसे महत्वपूर्ण 
कृति इनकी प्रीसेप्ट्स ऑफ जीसस मानी जाती हैं। राम मोहन राय जी ने संवाद की कौमुदी का भी सम्पादन किया था।

आत्मीय सभा की स्थापना राजा राम मोहन राय जी ने सन् 1814ई. में किया था। वेदान्त कॉलेज की स्थापना सन् 1815ई. में राजा राम मोहन राय द्वारा की गई थी।


राजा राम मोहन राय जी ने एक आन्दोलन चलाया  की सती प्रथा के विरुद्ध में था और इन्होंने शिक्षा के प्रति अपना पूर्ण समर्थन भी दिया। 

ब्रह्म समाज को आगे बढ़ाने में देवेन्द्रनाथ टैगौर ने कालान्तर में 1818 ई 1905 ई हाथ रहा है तथा बाद में ब्रह्म समाज के आचार्य के रूप में केशवचन्द्र को नियुक्त किया गया था।


कार्य और सुधार Raja Ram Mohan Roy Contribution


राजा राम मोहन राय ने अपने जीवन काल में बहुत सारे समाज सुधार के कार्य किए हैं इनके विचार बहुत ही खुले थे और इनका दिमाग भी बुहत तेज था और इन्होंने कई प्रकार की धर्मों का भी अध्यन किया था। 

इनकी सोच को पश्चिमी विचारधार ने बहुत ही प्रभावित किया था। राजा राम मोहन राय ने सूफी दर्शनशास्त्र के तत्वों और इस्लाम के एकेश्वरवाद व ईसाइयत की नीति व वेदांत के दर्शनों से बहुत ही प्रथावित थें। 


Raja Ram Mohan Roy Sati Pratha


राजा राम मोहन राय जी के जीवन का मुख्य उद्देश्य केवल एक ही था कि किस तरह से हिन्दू समाज में हर तरफ फैली हुई बुराईयों को नष्ट किया जाए उनका यही सपना था की हमारा भारत सर्वश्रेष्ठ बन जाए। 

उनका मानना था की हिन्दुओं में मूर्ति पूजा सही नही हैं और उन्होंने इसकी काफी आलोचा भी करी है तथा वेदों के द्वारा अपनी कही हुई बातों को सही साबित करने के लिए अनेक प्रयास भी किये थें।

राजा राम मोहन राय को आज भी सती प्रथा के नष्ठ करने के विषय में याद करा जाता हैं क्योंकि यही एक मात्र एसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपना पूर्ण जीवन सती प्रथा जैसे अंधविश्वास को खत्म करने में लगा दी थी।

इनका जीवन इसी प्रयास में खत्म हो गया और जब भी सती प्रथा का जिक्र होता है तो इनके इसी योगदान को याद किया जाता हैं।

राजा राम मोहन राय जी के जीवन काल में एक ऐसी घटना हुई जिसके कारण उनके ह्रदय पर ऐसा असर हुआ जिसके बाद उनका सदमा जैसा लग गया यह घटना उनकी भाभी की थी।

राजा राम मोहन राय के बड़े भाई की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी भाभी को जिंदा जला दिया गया ये कह कर की अब इसका पति नही रहा अब इसे सती होना पढ़ेगा और उनको सती प्रथा के भेट चढ़ा दिया गया यह घटना बहुत ही दुखद थी। 

उसी दिन से उन्होंने प्रण लिया सती प्रथा को जड़ से समाप्त करने का और यही कारण है कि राजा राम मोहन राय सती प्रथा के लिए अपना पूरा जीवन नौछावर कर दिया।

राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा जैसी क्रूर हत्या को खत्म करने के लिए अनेको आंदोलन चलाए और उन्होंने ब्रिटिश सरकार को सती प्रथा समाप्त करने के लिए व कानून बनवाने के लिए राजी भी कर लिया था। 

आपको बता दे की उस काल में गवर्नल जनरल लार्ड विलियम बैन्टिक थे जिन्होंने बंगाल में सन् 1829 में ही सती प्रथा के खिलाफ एक बिल पास किया जिसका नाम रेग्युलेशन एक्ट था।


राजा राम मोहन राय ने सन् 1828 में 20 अगस्त को बह्रा समज की स्थापना कर दी और बाद में ये ब्राहाण समाज हो गया। 

इस आन्दोलन को मुख्य कार्य महिलाओं की दयनीय दशा को सुधारना था और मूर्ति पूजा जैसे अंधविश्वास को समाप्त करना और ब्राहाणवादी विचारों को आगे बढ़ाना था। 


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